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Wednesday, 14 December 2011

मेरी राय में...

एन. रघुरामन, विजयशंकर मेहता

यह प्रबंधन का युग है। अब यह सर्वस्वीकृति हो चुका है कि कार्य के पूर्व योजना के समय में जो लोग सजग और सावधान होंगे वे ही सफलता तक पहुँचेगे। यूँ तो प्रबंधन का एक व्यवस्थित पाठ्यक्रम हो सकता है, लेकिन सिद्धान्त और व्यवहार का जब फर्क आता है तब असली परीक्षा होती है। अनेक लोग ऐसे हैं जिन्होंने सैद्धांतिक रूप से प्रबंधन के क्षेत्र में अधिक दक्ष साबित हुए हैं। यह गुण जितना मौलिक है उतना ही सतत अभ्यास भी मांगता है।
जो लोग इस बात के लिए जागरुक हैं कि जो कुछ उनकी व्यवस्था में उनके आसपास घट रहा है उसे योजनाबन्द्ध  तरीके से संपन्न किया जाए तो यही सबसे बड़ा प्रबंधन हो जाता है।

भारत में प्रबंधन की दृष्टि से सबसे बड़ी सुविधा यही है कि हमारे पास प्राचीन काल से चली आ रही एक परम्परा है जिसमें ऐसे साहित्य और विद्वानों के सूत्र हैं जो शायद संसार में कहीं और कम ही उपलब्ध है।
देखा जाए और गहराई से सोचा जाए तो अध्यात्म अपने आप में प्रबंधन है।
आध्यात्मिक व्यक्ति सुव्यवस्थित, सुनियोजित, दूरदर्शी, परिश्रमी, समर्पित और ईमानदार होता है। यह प्रबंधन के विशेष गुण हैं या यूं कहे प्रबंधन की सारी ताकत इन्हीं आचरणों में बसती है।
इस पुस्तक में श्री रघुरामन तथा पं. मेहता ने उन अनुभवों को प्रकाशित किया है जिन्हें उन्होंने न सिर्फ जाना है बल्कि जिया भी है। आधुनिक उदाहरण और आध्यात्मिक प्रसंगों का तालमेल हमें न सिर्फ जानकारी के स्तर पर समृद्ध बनाता है बल्कि चीजों को समझने के लिए और अधिक परिपक्क दृष्टि भी देता है।
मुझे आशा है कि यह पुस्तक हर उस व्यक्ति के लिए उपयोगी है जिसकी नीयत में ईमानदारी, प्रयासों में परिश्रम और आकांक्षा में सफलता है।

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